Tuesday, 25 March 2008




रेत सी फिसलती ज़िंदगी...

आज न जाने क्यों फिर लगा की ज़िंदगी रेत की तरह हाथो से फिसल रही है ...शायद इसलिए की वक्त करवट लेता है जो था वह आज नही, जो है वह कल नही रहेगा यही सिलसिला चलता रहता है तो फिर क्यों हम ज़िंदगी मैं हर हालात को काबू करने की बेवजह कोशिश करते रहते है फिर ये ख्याल आता है की कोई तो मकसद हो जो जेने की वजह दे सके फिसलती ज़िंदगी को हिम्मत से समेटना भी तो एक मकसद हो सकता है, मैंने तो हिम्मत बटोर कर ख़ुद तो दोबारा जोड़ कर फिर से लड़ने के लिए तैयार कर लिया है और अपने ...