Friday, 15 June 2007

वक्त ...


कभी कभी हम वक़्त को दायरे मे समेटने कि कोशिश करते हैं और इस कोशिश में सब कुछ बिखरता हुआ सा लगता है ......तो बेहतर ये है कि हम वक़्त के साथ कदमताल मिल कर चले.....इस तरह हमारी राह बेहतर न सही बदतर तो नहीं होगी